शेयरों में बाय - बैक ' ( Buy-back ) :
इससे कम्पनी का इक्विटी कैपिटल कम हो जाता है , क्योंकि बाजार से वापस खरीदे गए शेयर खारिज हो जाते हैं । कम्पनी ऐक्ट के नियमों के अनुसार इन शेयरों को दोबारा जारी नहीं किया जा सकता । अतः कम्पनी का इक्विटी कैपिटल कम होने के साथ बाजार में उपलब्ध कम्पनी के शेयर भी कम हो जाते हैं । इससे प्रति शेयर आमदनी ( ई पी एस ) बढ़ जाती है , क्योंकि उतना ही शुद्ध लाभ अब पहले से कम इक्विटी कैपिटल पर विभाजित होता है । नतीजा यह कि बाजारों में कम्पनी के शेयर को बेहतर पी / ई मिलता है और शेयर का दाम बाय बैक से पहले के दाम से बहुत बढ़ जाता है ।
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अक्सर बाय - बैक इस बात का संकेत होता है कि कम्पनी मानती है । कि बाजारों में उसके शेयर को अपने उचित मूल्य से कम भाव मिल रहा है । मैनेजमेन्ट द्वारा अपने शेयरों में इस प्रकार के विश्वास प्रदर्शन से भी शेयरों के भाव चढ़ जाते हैं ।
कई बार मैनेजमेन्ट अपनी कम्पनी में सार्वजनिक स्वामित्व कम करने के लिए भी शेयर वापस खरीदती है । यह स्टॉक एक्सचेंज से शेयर को डी - लिस्ट करने , यानि एक्सचेंज की सूची से शेयर को हटाने की दिशा में एक कदम है ।
किसी कम्पनी के शेयरों में बाय - बैक का दाम अक्सर बाजार में चालू भाव से अधिक , और कई बार बहुत अधिक होता है । इससे निवेशकों को प्रायः असाधारण लाभ होता है जो उन्हें साधारण स्थिति में न मिलता ।
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